जब हम "रिती" शब्द सुनते हैं, तो तुरंत दादियों की कहानियाँ, त्यौहार और रोज़मर्रा की छोटी‑छोटी आदतें दिमाग में आती हैं। ये वही चीज़ें हैं जो हमारे जीवन को रंगीन बनाती हैं और पहचान देती हैं। आज हम देखेंगे कि रिती क्यों जरूरी है और इसे कैसे आज के दौर में भी जीवित रखा जा सकता है।
रिती मतलब सिर्फ़ कोई पुरानी अड़चन नहीं, बल्कि ऐसी आदतें और रीति‑रिवाज हैं जो पीढ़ी‑दर‑पीढ़ी चलते आए हैं। चाहे घर में दाल‑भात के साथ कढ़ी परोसी जाती हो या शादी में हल्दी की रस्म, हर रिवाज का अपना कहानी है। इन रस्मों में अक्सर सामाजिक बंधन, सम्मान और धर्म की सीख छिपी होती है।
उदाहरण के तौर पर, मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू बनाना सिर्फ़ मिठाई नहीं, बल्कि सर्दी‑सूर्य के बदलाव को मनाने का तरीका है। इसी तरह, दिवाली पर दीप जलाकर अंधकार पर प्रकाश की जीत को दर्शाते हैं। ऐसे छोटे‑छोटे कामों में ही हमारे इतिहास की झलकी मिलती है।
समय बदल रहा है, लेकिन रिती को जीवित रखने के लिए हमें थोड़ा रचनात्मक होना पड़ेगा। सबसे आसान तरीका है—परिवार के साथ मिलकर ये रीति‑रिवाज अपनाना। जब बच्चे दादी‑नानी के साथ पकवान बनाते हैं या त्यौहारी गीत सुनते हैं, तो रिती खुद‑बख़ुद आगे बढ़ती है।
सोशल मीडिया भी मदद कर सकता है। अगर आप कोई पुरानी रिवाज़ की फोटो या वीडियो शेयर करें, तो आपके दोस्त और फॉलोअर्स भी उसे सीखेंगे। इस तरह डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर रिती का नया रूप बनता है, जो पुरानी भावना को आधुनिक पाबंदियों से जोड़ता है।
दूसरा तरीका है—स्थानीय समुदायों में भाग लेना। गाँव में होली या पोंगल का बड़ा जश्न, शहर में भी छोटे‑छोटे समूह बनाकर मनाया जा सकता है। इससे न सिर्फ़ रिती बचती है, बल्कि पड़ोसी‑समुदाय के साथ रिश्ते भी मजबूत होते हैं।
अगर आप बड़े शहर में रहते हैं और समय नहीं मिल रहा, तो भी छोटे‑छोटे कदम उठा सकते हैं। जैसे रोज़ रात को दालिया में थोड़ा दाल डालकर परिवार के साथ खाने का समय तय करना। यह एक सरल रिवाज़ है, लेकिन इससे घर में सामंजस्य बना रहता है।
अंत में, रिती को संजोने के लिए हमें अपनी ज़िंदगी में इन छोटे‑छोटे जश्नों को जगह देनी होगी। चाहे वो रविवार की पारिवारिक फ़िल्म रात हो या शुक्रवार की शाम को घर की शुद्ध दाल‑भात, इन छोटे‑छोटे कदमों से हम अपनी संस्कृति को जीवित रख सकते हैं।
तो अगली बार जब आप किसी त्यौहार या रिवाज़ को देखेंगे, अपने दिल में एक सवाल पूछिए—क्या मैं इस रिती को अपनी कहानी में जोड़ सकता हूँ? अगर हाँ, तो यही है असली भारतीय परम्परा का जादू।