नेकी करो और दरिया में डालो। ये तो बुजुर्गो से सुना और किताबों में पढ़ा था। किन्तु आजतक किसी ईमानदार,और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को गलत ठहरानें के लिए उस पर आरोपो की बौछार करके उसे पथभ्रष्ट करने की बातें किसी किताबों में नहीं पढ़ने को मिलती हैं। क्योंकि कोई भी लेखन समाज को सही दिशा दिखाने का ही कार्य करता हैं उसे गलत ठहरानें के लिए उसकी कार्य शैली पर निजी हमले करना कौनसी संवैधानिक पुस्तकों में लिखा हुआ हैं ? और किसने लिखा हैं? आज यह बहस एक गंभीर और ज्वलंत सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षणिक मुद्दा बन चुकी हैं। स्कूल और कालेजों की कक्षाओं में युवाओं को कैसे समझाएं कि एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी होना आज के सामाजिक परिपेक्ष्य में जिम्मेदारियों को निभाना सही हैं या गलत हैं ? एक नेता के दामाद और अभिनेता के बेटे आर्यन खान का ड्रग्स मामले में फंसना देश के ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर और कर्मचारियों के लिए जांच करना बाद में झूठे आरोपो से उन्हें प्रभावित करने की दबावपूर्ण राजनैतिक दुष्यप्रवृतियों के चलते अब एक नई मुसीबत बनता जा रहा हैं। क्या अपराध या अपराध की घटनाओं से जुड़े लोगों की जांच करना क्या कोई अपराध हैं? यदि नहीं तो फिर एनसीबी के एक कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अफसर के ऊपर एकाएक निजी हमलों का राजनैतिक औचित्य क्या हैं ? महाराष्ट्र के एक बड़े मीडिया मालिक ने भी आवाज उठाई थी कि राज्य की छवि को देश विदेश में बदनाम किया जा रहा हैं। उनका ईशारा स्पष्ट था कि जांच को राजनैतिक तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए।
अपराध छोटा हो या बड़ा अपराध,अपराध ही कहलाता हैं। उसे करने वाला चाहे एक साधारण व्यक्ति हो या रसूकदार व्यक्ति। नेता पुत्र हो या अभिनेता पुत्र । कानून की निगाह में सब समान ही हैं। एक अफसर पर। और उसकी जांच टीम पर निर्भर करता हैं कि वह चट्टान की तरह हालातों से लड़ता रहे या अपने इमान को बेचकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दें।सूत्रों की माने तो आज देश की जनता जानना चाहती हैं कि अपराध की जांच के दौरान लगाए गए गंभीर आरोपो के सिध्द नहीं होने पर उन लोगों पर भी कड़ी कार्रवाई होगी जो जांच को प्रभावित कर किसी अधिकारी को सामाजिक,मानसिक और वैचारिक उत्पीड़न प्रदान करने में जुटें हुए हैं? क्या किसी के द्वारा लगाए गए आरोप इतने सहज और सरल हैं कि किसी भी ईमानदार अफसर या कर्मचारी को उसे दिशाहीन किया जा सके। सोचने की बात यह हैं कि आज समाज में हर शासकीय और निजी विभागों में ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर और कर्मचारियों का नितांत अभाव होता जा रहा हैं। वहीं भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गंभीर हो गई हो चुकी हैं कि उसे जड़ से मिटाने में आज ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर और कर्मचारियों को हर तरफ अग्निपथ और अग्निपरीक्षा से गुजना पड़ रहा हैं। महाराष्ट्र सरकार के केवल एक मंत्री का तमाम तरह के आरोप लगाना और देश की हर मीडिया चैनलों में सरलता से सुर्खियां बटौरना किसी भी अन्य राजनीतिक पार्टियों के गले नहीं उतर रहा हैं। नवाब मलिक की समस्या क्या हैं ये ना तो समीर वानखेड़े समझ पा रहे हैं और ना नवाब मलिक जैसे मंत्री ये समझ पा रहे हैं कि समीर वानखेड़े ना केवल ड्रग्स माफियाओं पर नकेल कस रहे हैं वरन वे बड़ी ही ईमानदारी से बिना पक्षपात के अपराधियों के साथ कोई दोयम व्यवहार कर रहे हैं? फिर स्वतंत्र जांच करने में किसी पर इतने आरोप – प्रत्यारोप की कोई जरूरत भी क्यों हैं ? मेने बचपन में एक शिक्षक से सुना और समझा था कि एक शिक्षक केवल जीवनभर शिक्षक ही बना रहता हैं। अर्थात् वह ना तो पढ़ाने में कोई पक्षपात करता हैं और ना ही कोई भ्रष्टाचार के दलदल में फंसता हैं। किन्तु एक शिक्षक की यह शिक्षा आज के समाज में कई मायनों में बदल चुकी हैं।
केन्द्र सरकार को भी ऐसे कानून बनाने होगें कि किसी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर और कर्मचारियों पर कोई यदि आरोप लगाए तो उसकी सजा उसे क्या मिलनी चाहिए ? आर्यन खान की रिहायी किसी बड़े जलसे से कम नहीं मनाई गई। वहीं एक गरीब और मध्यमवर्गीय जेल से बाहर आता हैं तो उसे समाज कई महिनों तक अपराधी की तरह देखकर उससे व्यवहार करते हैं। परन्तु आर्यन का बाहर आना और दीवाली की तरह उत्साह मनाना स्पष्ट करता हैं कि बड़े अपराधों की बड़ी चर्चाओं को ऐसी चकाचौंध में दबाने कि भरपूर कोशिश की जाती हैं। ताकि समाज और मीडिया उसे इज्जतदार इंसान कर उसका इन्टरव्यू ले सकें। समाज की इस संकीर्ण और घटिया सोच के कारण आज कई निर्दोष व्यक्ति आगे चलकर जघन्य अपराध को भी बड़ी सरलता से अंजाम देने में कोई संकोच नहीं करते हैं। आजकल अपराधियों को बचाने का समूहवादी दृष्टिकोण उत्पन्न हो चुका हैं। आर्यन यदि फिल्मीस्तान से हैं तो पूरी फिल्मी दुनिया उनके समर्थन में सड़कों पर उतरेगी और कानून और ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अफसरों के खिलाफ अर्नगल बातें बोलने लगेगी। चाहे वह व्यक्ति अपराधी ही क्यों ना हों। वहीं निर्दोष और बेगुनाह व्यक्तियों के समर्थन में कभी फिल्मीस्तान की आवाज नहीं खुलती हैं। देश में जहां करोड़ों लोग इनकी फिल्मों को देखकर इनके नाम को बढ़ावा देते। उन देशवासियों के लिए फिल्मी दुनिया के लोग आखिर कब ड्रग्स या अन्य अपराधों के दलदल से बाहर निकलकर एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेगें ? और कब देश के गरीबों और मध्यमवर्गीय लोगों के दर्द को समझनें की कोशिश करेगें। एक ईमानदार अफसर समीर वानखेड़े के साथ आज पूरा देश आवाज बनकर खड़ा हो गया हैं किन्तु नवाब मलिक अपनी जिद्द पर अड़े हुए हैं और गड़े मुर्दे खोदकर डीएनए टेस्ट करवाने में जुटे हुए हैं। आज एनसीबी और एनसीपी के बीच एक नया राजनैतिक पेंच फंस चुका हैं। समीर वानखेड़े जहां चट्टान की तरह डटे हुए हैं तो वहीं नवाब मलिक को राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अन्य नेताओं से भी खरी खोटी सुनना पड़ रही हैं। शरद पवार की चुप्पी भी कई मायने में अन्य दलों के लिए एक पहेली बनती जा रही हैं। क्योंकि हल दल के कोई भी मंत्री जब बयानबाजी करते हैं या किसी अन्य आरोपों के घेरे में आते हैं तो पार्टी आलाकमान को भी जवाब देना मुश्किल होने लगता हैं। शरद पवार ने एक पूर्व मंत्री अनिल देशमुख के समय की स्थिति का बहुत ही बारिकी से पार्टी स्तर पर मूल्यांकन कर चुके हैं। इसलिए पवार ना तो आर्यन को लेकर कोई टिप्पणियाँ कर रहे हैं और ना ही समीर वानखेड़े की कार्यशैली पर कुछ बोल पा रहे हैं। भाजपा ने भी वानखेड़े और आर्यन दोनों से दूरी बनाकर रखी हुई हैं। सच तो यह हैं कि ना तो आर्यन कोई सुपर स्टार बनकर उभरे और ना ही शाहरूख खान ने मीडिया के सामने कोई बयानबाजी की। बल्कि मंत्री नवाब मलिक और समीर वानखेड़े की आपसी आरोपो वाली कार्रवाई से आर्यन खान को लम्बें समय तक जेल के सलाखों के पीछे रहना पड़ा। समीर वानखेड़े को जांच आयोग से हरी झंडी मिलने की हैं। उसके बाद समीर वानखेड़े को केवल और केवल ड्रग्स माफियाओं और जुड़े अपराधियों को ताबड़तोड़ धरपकड़ करके सलाखों के पीछे डालना होगा। जांच में विलम्बता से कई बार ड्रग्स केस की सच्चाई को भी आहत होना पड़ा हैं। इसलिए एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर को और उसकी जांच टीम ने बेरोकटोक ड्रग्स माफियाओं को दबोचना होगा तभी समाज के युवाओं को एक ईमानदार आयकान अफसर उनकी प्रेरणा बनकर देशप्रेम और कार्य दायित्वों से अभिप्रेरित कर सकेगा।