देश और राज्य भर में कोरोना के कहर ने हाहाकार मचाया हुआ है. हर तीसरे परिवार ने इस कहर की वजह से कुछ ना कुछ खोया है. किसी ने अपने सगे की मौत देखी है, ये जो कहानी मैं आपसे शेयर कर रहा हूं यह पुणे शहर से है. दरअसल यह कहानी नहीं एक दर्दनाक हकीकत है जो महाराष्ट्र की एक मराठी न्यूज वेबसाइट ‘लोकसत्ता डॉट कॉम’ में छपी है.
पुणे के कैलाश श्मशान भूमि में काम करने वाले एक कर्मचारी ललित जाधव ने इन दिनों श्मशान घाट के उनके अनुभवों को बयान किया है, जिन्हें जानकर मन कांप जाता है, आंखों से आंसू निकल आते हैं. ललित जाधव बताते हैं, “शाम का वक्त था. श्मशान घाट में काम करने वाले हम कर्मचारी आए हुए मृत शरीर को एक-एक कर विद्युत शवदाहिनी में रख रहे थे. तभी श्मशान घाट में एक एंबुलेंस दाखिल हुई. उस एंबुलेंस से डेड बॉडी हमने जमीन पर रखी. उस एंबुलेंस के ठीक बगल में एक आलीशान कार आकर रूकी. उस गाड़ी से दो बच्चे उतरे. उनकी उम्र यही कोई आठ से दस साल रही होगी. वे गाड़ी से उतर कर यहां-वहां देख रहे थे. वे अचानक मेरे पास आए और कहने लगे, ये मेरी मां है. अब हमारा कोई नहीं. मामा, हमारी मां की अस्थियां मिलेंगी ना? यह कहते ही वे दोनों बच्चे दहाड़ मारकर रोने लगे. उन्हें देख कर मुझे भी रोना आ गया.
इस अनुभव को बयान करते हुए पुणे के उस श्मशान घाट के कर्मचारी आगे बताते हैं.“मैंने उन दोनों बच्चों को अपने सीने से लगा लिया. मैं उनसे क्या कहूं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैंने उनसे इतना ही कहा, बच्चों रोना मत, फिर मैंने उन्हें पानी लाकर दिया. किसी तरह से उन्हें शांत किया और कहा, बच्चों मैं तुम्हें अस्थियां देता हूं. “ अपने इस अनुभव को बताते हुए वे कहते हैं कि आज तक उन्होंने कई लोगों को इस श्मशान घाट में आते देखा है. अपने सगे संबंधियों के लिए रोते-चीखते-चिल्लाते देखा है. लेकिन उन दोनों बच्चों का वो रोना उनके मन में गूंजता ही जा रहा है, उन बच्चों का वो सवाल उनके जेहन में घुलता ही जा रहा है, उन बच्चों की बातें उनसे भुलाई नहीं जा रही हैं. उनकी वो मासूम फरियादें, वो यादें दिल से हटाई नहीं जा रही है. वो बताते हैं कि वो मृत महिला पुणे के एक बड़े उद्योगपति की बेटी थीं.