अपराध, अपराधी और जांच ऐजन्सियों पर हावी राजनीति

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तेजी से बढ़ते अपराध और अपराधियों की संख्या का ग्राफ समाज और कानून दोनों के लिए कई मायनों में एक नई मुसीबत बनता जा रहा हैं। अपराध के लिए जमीन तलाशते युवा अपराधियों की भूमिका ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक और नई शिक्षा नीति को अमलीजामा पहनाया जा रहा हैं वहीं दूसरी और अपराध की संख्या भी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं। पिछले दो सालों में ड्रग्स माफियाओं की आपराधिक गतिविधियों में बेरोक टोक तेजी से वृध्दि हुई हैं। कहा तो यह जाता हैं कि कानून के हाथ बहुत लम्बें होते हैं परन्तु अब देखा और पढ़ा यह जा रहा हैं कि अपराधियों को पकड़ने वाली जांच ऐजन्सियों के ईमानदार अफसर और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारीगण ही आरोपों की बौछारों को झेलकर बेवजह अपने सामाजिक मान सम्मान और सेवा दायित्वों के लिए जान की बाजी लगा रहे हैं। समीर वानखेड़े एक अकेले ऐसे अफसर नहीं हैं जिन्हें अग्निपरीक्षा देना पढ़ रही हैं।

देश में ऐसे कई प्रेरणावान जाबांज सिपाही और अफसर होगें जिन्हें अपनी डयूटी का निर्वाह करते हुए अपमान के कड़वें घूंट पीना पड़ रहे हैं। कई कमजोर और समझौतावादी अफसर या सेवा से सेवानिवृत्ति ले लेते हैं या लम्बी छुट्टियों पर चले जाते हैं। बड़े अफसोस की बात हैं कि वे अपनी नौकरी की शपथ को भी तिलांजलि देते हैं। किन्तु समीर वानखेड़े और उनके परिजनों की मानसिक परेशानियों और सामाजिक प्रतिष्ठा को हम सबने समझना होगा। आरोप लगाने वाले चाहे कोई भी क्यों ना हो उनका मान सम्मान और प्रतिष्ठा सब महत्वपूर्ण हैं और अपराधियों की जांच करने वाले अधिकारियों की कोई सामाजिक इज्जत नहीं हैं ? यह एक गंभीर मसला हैं जो आज मीडिया और आम जनता के लिए चर्चा का विषय बन चुका हैं। जो नेता सत्ता में नहीं हैं वे तो ऐसे ड्रग्स या अन्य आपराधिक मामलों में बोलने से पहले दस बार सोचते हैं किन्तु जो सत्ता में बैठे हैं और आम जनता के सेवक बने हुए हैं उन्हें तो जांच ऐजन्सियों और उनसे जुड़े अधिकारियों के लिए ना तो बोलने का कोई संवैधानिक हक हैं और ना ही बिना सबूतों के अर्नगल आरोप लगाकर किसी कि सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करने का द्वेषपूर्ण कोई मकसद होना चाहिए। महाराष्ट्र के एक मंत्री ने जिस तरह की जंग मीडिया में छेड़ रखी हैं उससे तो यही आभास और उजागर होता हैं कि सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए किसी पर भी कुछ भी आरोप मड़ दीजिए जो भी होगा बाद में देखा जाएगा। आज पूरी दुनिया में समीर वानखेड़े एक सुपर हीरो बनकर नेक और ईमानदार आफीसर बनकर उभरें हैं। युवाओं और प्रतियोगी परीक्षा देनें वालों के लिए सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत और आयकान बनकर कई दिलों में हिम्मत और साहस की बेमिसाल बन चुकें हैं। उनकी पत्नी, बहन और पिता ने जो साहसिक कदम उठाकर देश दुनिया को एहसास कराया हैं वह नि:संदेह तारीफे काबिल हैं। चारों तरफ से घिर चुके नवाब मलिक को अब एकमेव पार्टी अध्यक्ष शरद पवार की किसी भी टिप्पणी का बेसब्री से इंतजार हैं। वहीं सत्ता में सहयोगी कांग्रेस कुछ भी बोलने से कतरा रही हैं। मलिक के समर्थन में केवल शिवसेना के सांसद संजय राऊत ही बोलते देखे गए हैं। प्रश्न उठना लाजमी हैं कि क्रूज ड्रग्स प्रकरण की सच्चाई को सामने लाने के लिए सत्ता में बैठी सभी पार्टियों ने जांच पर कोई आंच नहीं आने देने के लिए मीडिया के सामने आना चाहिए।

समीर वानखेड़े पर लगे सैंकड़ों आरोपो की जांच भी अपने स्तर पर आरंभ हो चुकी हैं। परन्तु जांच के बाद यदि समीर वानखेड़े की सच्चाई की जीत होती हैं तो नवाब मलिक क्या स्वैच्छा से त्यागपत्र देकर ड्रग्स केस की आगे की जांच में समीर वानखेड़े के समर्थन में उतरेगें ? यदि नहीं तो पार्टी आलाकमान नवाब मलिक के लगाए गए आरोपो पर, जो कि झूठें साबित होते हैं तो कोई बड़ी कार्रवाई करेगी ? सूत्रों कि माने तो आज देश का मीडिया लगभग बिकाउ हो चुका हैं। चैनलों की बाढ़ में जनता के मुद्दें दबकर रह गए हैं। उप्र में चुनाव हैं तो कोई औवेसी के भड़काऊ भाषणों को लगातार दिखा दिखाकर दर्शकों की मानसिकता को आहत कर रहे हैं वहीं कोई समीर और मलिक की आरोपो वाली लड़ाई को रातदिन दिखा रहे हैं। कोई पाकिस्तान के इमरान खान और चीन जिनपिंग को लपटने में लगा हुआ हैं तो कोई जिन्ना, ममता बनर्जी, तेजप्रताप यादव के निजी बयानों पर घंटों हम जैसे दर्शकों को बेवकूफ बनाने में जुटें हुए हैं। जनता के ज्वलंत और जीवन मूल्यों और दैनिक जिंदगी से जुड़े मुद्दों को कोई भी चैनल लगातार दिखाने से कतरा रही हैं। चैनल मीडिया के परोसे जाने वाले समाचारों में ना तो पेट्रोल डीजल का विस्तृत जिक्र हैं और ना ही सरकारी योजनाओं के लाभ की बातों का लोकव्यापीकरण हैं। आम जनता के दर्द को उजागर करने के बजाय नेताओं के भाषणों और बेवजह के आरोपों को बड़ा चढ़ा कर परोसा जा रहा हैं। लोकतंत्र में यदि कोई इंसानियत और ईमानदारी के दर्शन करना हैं तो समीर वानखेड़े जैसे लोगों को ढूंढना होगा और उन्हें आगे लाकर जनता के सेवक की कमान सौंपना होगी। यही हाल लेखकों की जिंदगी में भी कई मायने रखता हैं। लेखकों को भी वही लिखना चाहिए जो सच हैं और दर्पण की तरह साफ और सुथरा हैं। जिस दिन या जिसकी कलम बिक चुकी हैं ऐसे लोगों को जनता से सहयोग की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। आज लोकतंत्र का चौथा प्रहरी मीडिया कई मामलों में न्याय के कटघरें में मुंह झुकाएं खड़ा हुआ हैं।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने भी यही टिप्पणी की हैं कि मीडिया को जमीनी स्तर पर या साक्ष्यों के मामलों में सच्चाई को जाहीर करने के मामले में बेबाक रूप से अपने धर्म का पालन करना चाहिए। वहीं बिना राजनैतिक दबाव के सभी मीडिया ने लोकतंत्र के रहवासियों के लिए जनता की आवाज बनने से पीछे ना हटने का अपना लेखनी संकल्प भी सदैव स्मरण रखना होगा। वरना वह दिन दूर नहीं हैं जब सत्ता की चाह में राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए आम लोगों के गंभीर मुद्दों को कभी उजागर नहीं होने देगी। इसलिए मीडिया की भूमिका पर लग रहे आरोपों को भी तमाम मीडिया चैनलों ने समझना होगा। आज बिकाऊ मीडिया की जगह दिखाऊ मीडिया बनना होगा। आज समाज में अपराध एक गंभीर समस्या बन चुका हैं। ऐसे में लेखकों,समाजसेवियों और ईमानदार अफसरों को एक साहसिक जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा। तभी समाज में व्याप्त अपराध, अपराधियों को रोकने और उन्हें पकड़कर सलाखों के पीछे भेजने के लिए अपराधियों की जांच कर रहे नेक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ सेवाकर्मियों को प्रोत्साहित करने की मुहिम जमीनी स्तर पर चलाना होगी। समाज सेवा के नाम पर अनुदान प्राप्त कर रोटियाँ सेकने वाले हजारों एनजीओ की भूमिकाओं की सच्चाई को भी मूल्यांकित करना होगा। इसलिए अब सच्चाई से लड़ने की जो मुहिम समीर वानखेड़े ने आरंभ की हैं उसको देश के करोड़ो हर एक युवाओं को लड़ना होगी तब कहीं ये देश एक नई महाशक्ति बनकर तेजी से उभरने में कामयाब हो सकेगा।

डां. तेजसिंह किराड़
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक
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